प्रचार खिडकी

गुरुवार, 13 अक्तूबर 2016

बहुत खराब लिखने बैठा हूँ मैं







बारूद की स्याही से , नया इंकलाब लिखने बैठा हूं मैं ,
सियासतदानों , तुम्हारा ही तो हिसाब लिखने बैठा हूं मैं
बहुत लिख लिया , शब्दों को सुंदर बना बना के ,
कसम से तुम्हारे लिए तो बहुत , खराब लिखने बैठा हूं मैं
टलता ही रहा है अब तक , आमना सामना हमारा ,
लेके सवालों की तुम्हारी सूची, जवाब लिखने बैठा हूं मैं
सपने देखूं , फ़िर साकार करूं उसे , इतनी फ़ुर्सत कहां ,
खुली आंखों से ही इक , ख्वाब लिखने बैठा हूं मैं ......
मुझे पता था कि बेईमानी कर ही बैठूंगा मैं ,अकेले में,
सामने रख कर आईना , किताब लिखने बैठा हूं मैं ...
 
जबसे सुना है कि उन्हें फ़ूलों से मुहब्बत है ,
खत के कोने पे रख के ,गुलाब , लिखने बैठा हूं मैं 
........

मंगलवार, 11 अक्तूबर 2016

औरत : एक अंतहीन संघर्ष यात्रा

                                        औरत : एक अंतहीन संघर्ष यात्रा एक प्रकाशित आलेख
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