प्रचार खिडकी

शनिवार, 10 अगस्त 2013

रेत की तलवार से ...............




मत कर औकात की बात तू हाकिम , जब इत्ता सा सच सुनने का भी ,तुझमें माद्दा नहीं है ,
"रेत की तलवार से" लडने चला है ,अडिग चट्टान से , दिन तेरे पास अब ज्यादा नहीं है ॥
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अबे छोडो हाकिम, साला ,पिद्दी के शोरबे सा पडोसी , तो तुमसे ठोका ना जाए ,
फ़िर ऐसा ही है तुम्हारी हिम्मत तो ,हमें भी खालिस सच कहने से रोका ना जाए
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सच उगलने को यूं उकसाया न करो ,
और उगल ही दूं ,सच को , इतना भी ,दबाया न करो
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नज़रों में कयामत ,होठों पे बगावत ,अपनी तो ,यही पहचान भर है
कभी पूछ बैठना हमसे हमारी हैसियत, तुममें ज़रा भी हिम्मत गर है
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तुम छुप छुप के करो हमले ,हम घर घुस के मारेंगे ,
इन्हें समझाओ दुनिया वालों ,ये साले यूं न मानेंगे
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मैं जानता हूं जंग के हालात बात ,हर वक्त माकूल नहीं है ,
मगर तोड के हर बार जोडते हो रिश्ता , सियासतदानों क्या ये भूल नहीं है ?
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रात सपनों में आई थी जिंदगी तुम ,
सुबह गमलों में ,फ़ूल बनके उग आई हो......
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मत बैठ मेरे सामने यूं ,जिंदगी , बात-बेबात के लिए ,
क्या पता कल तेरे पास वक्त हो न हो ,मुलाकात के लिए ......
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सियासत सत्तानशीनों के कानों में शीशा बन कर यूं ही तुम पिघलते रहना ,
सुनकर खुद मर जाएंगे हाकिम इक दिन , सच को सच की तरह बस उगलते रहना
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बिलख पडते हैं जो , हमारे कहे,लिखे बोले भर से , तो फ़िर जम के इनपर प्रहार कीजीए,
कतरा कतरा कट जाए ,कालिख सारी , कलम को सान चढाकर इतना धार दीजीए
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हम सीने में आग उबालते हैं , छूने भर से वो खाक हो जाएंगे ,
किसमें हिम्मत ,ललकार दे हमें सामने से ,कलेजे चाक हो जाएंगे
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