प्रचार खिडकी

रविवार, 26 दिसंबर 2010

मुद्दत से एक पूरी जिंदगी ढूंढता हूं मैं ....





जीने को जी ही रहा हूं रोज़ कतरा कतरा ,
मुद्दत से एक पूरी जिंदगी ढूंढता हूं मैं ....


आसमां तो चूम लिया कब का ,.................


बुधवार, 22 दिसंबर 2010

नई दुनिया ,में प्रकाशित मेरा एक लघु आलेख ...



आलेख को पढने के लिए उस पर चटका लगा दें । छवि अलग खिडकी में बडी होकर खुलेगी





मंगलवार, 14 दिसंबर 2010

ओह वो चम्मच भर हॉर्लिक्स पावडर ...अमूल स्प्रे की याद दिला गया




कल . बेटे के दूध में हॉर्लिक्स पावडर मिलाते समय . अचानक ही एक चम्मच अपने मुंह में ले बैठा ....ओह याद आ गई हो बचपन की दुनिया । याद है कैसे पहली पहली बार जब वो दूध का पावडर चलन में आया था ...चाय बनाने के लिए इंस्टैंट दूध .....अजी तब फ़्रिज का जमाना कहां था कि दूध के फ़टने का डर नहीं ..सो जैसे ही ये बाजार में उपलब्ध हुआ ...बहुत जल्दी ही लोकप्रिय हो गया । और शायद इसके साथ ही बच्चों के लिए भी दूध का पावडर आ गया होगा , मगर उस समय वो बिल्कुल भी चलन में नहीं था ।

खैर बडों की चाय के लिए दूध की आवश्यकता के बहाने जो अमूल स्प्रे का डब्बा आता था , वो रसोई में हम बच्चों के लिए उसी तरह का एक आकर्षण का आईटम था जैसे गुड की भेली , या फ़िर पकी हुई इमलियां जिसे नमक लगा के चटखारे के साथ चाटते थे ..और ऐसा ही कुछ कुछ होता था , जब नज़र पडती थी ..कॉम्प्लान , हॉर्लिक्स , और बोर्नवीटा के डब्बे पर ..कब चम्मच निकला और कब गपाक से एक चम्मच वो पावडर ...ओह मुंह में जाते ही तलुवे से , जीभ से और लाख बचाने के बाद भी होठों से भी चिपक जाता था ...क्या बात थी उस अनोखे स्वाद की ..अब तो पता नहीं बच्चे ये करते हैं कि नहीं?????

...आखिर वो स्मार्ट पीढी है ....मैं ये सोच ही रहा था कि ..बेटा आ खडा हुआ ....अच्छा पापा आज आप भी ..वाह कल से दोनों जन उडाएंगे ..एक एक चम्मच हॉर्लिक्स पावडर ......हा हा हा हम देर तक हंसते रहे

गुरुवार, 2 दिसंबर 2010

दैनिक महामेधा दिल्ली में प्रकाशित मेरा एक लघु आलेख .....

आज के दैनिक महामेधा दिल्ली , में प्रकाशित मेरा एक आलेख जिसे आप मेरे ब्लॉग आज का मुद्दा पर एक पोस्ट के रूप में पढ चुके हैं । चित्र को बडा करके पढने के उस पर चटका लगा दें और खुलने वाली छवि को चटका कर बडा करके आराम से पढा जा सकता है
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