प्रचार खिडकी

सोमवार, 29 जून 2009

बारिश और बिजली (व्यंग्य)





उस दिन आसमान में छाये काले बादलों के झुंड को चातक पक्षी की तरह निहारते हुए बोले, यार अब तो इन बादलों को देखकर लगता है जैसे शहर की सारी गाड़ियों का काला धुंआ चिमनी से ऊपर जाकर इकठ्ठा हो जाता है. सिर्फ काला काला ही दिखता है..कभी गीला गीला होता नहीं

अच्छा तो बारिश का इन्तजार हो रहा है.., लपटन बोले,

नहीं नहीं बिजली का...हमने जवाब दिया..

उन्होंने हमें कुछ इस तरह के भाव के साथ देखा जैसे भाव गणित की पुस्तक का कवर देखते ही हमारी चेहरे पर आ जाते थे.बारिश और बिजली ..कैसी पहेली है..यही सोच रहे हैं न मियाँ लपटन , आरे आइये हम विस्तार से समझाते हैं..आपको...

महानगरों में गर्मी का एहसास होते ही बिजली ऐसे बिदक जाती है जैसे कोई प्रमिका शौपिंग के लिए मन करने पर बिदकती है. ओ सरकारी और व्यापारी दोनों के बूते से बाहर हो जाता है शहर को रात में गाँव बनाने से बचाना. ऐसे में एक ही दलील होती है की मांग अधिक हो रही है . अब इन्हें कौन समझाए की जनसँख्या का पेट फटने से भी जहां बच्चों की मांग नहीं घाट रही है वहाँ बिजली की मांग क्या ख़ाक घटेगी और जो घट ही जाए तो मांग कैसी...ऐसे में बस एक ही आसरा होता है बारिश का. बारिश से गर्मी की तपिश कम हो जाए तो शायद कूलर वैगेरह कम चलें. ऐसी का इससे कोई लेना देना नहीं है, क्यूंकि उसका रिश्ता गर्मी से नहीं बल्कि स्टेटस से ज्यादा है.समझे लपटन मियां,,अब आगे सुनो

पहले तो बारिश की चार बूँदें पड़ते ही बिजली गुल हो जाती है, मगर बारिश बंद होते ही waapas नहीं आती. तो हुई न पहली बचत, हमने समझाया. न, न, इस कटौती से लोगों को कोई शिकायत नहीं होती हो भी क्यूँ भाई ये तो सुरक्षा के दृष्टिकोण वाली कटौती होती है न. लोगों की सुरक्षा के प्रति vidyutkarmiyon की भावना के आगे लोगों के क्रोध की भावना शांत हो जाती है. इसके बाद नंबर आता है शहर की ट्रैफिक लाईटों में खपत होने वाली बिजली की बचत का. बारिश में शहर की आधी सड़कें तो जल यातायात के उपयुक्त हो जाती हैं ऐसे में सड़क यातायात निर्देशों की क्या आवश्यकता..

हालांकि दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों में पिछली बरसातों के बाद जैसा पानी इकठ्ठा हुआ था उसके बाद से ऍम एक विचार जोर पकड़ता जा रहा है . यदि जहग जहग बाँध बना कर बारिश के इस इक्केट्ठे पानी द्वारा भी हम सड़क पर ही विद्युत उत्पादन कर लें तो क्या ख़ाक कम पड़ेगी बिजली...यानि आम के आम गुठलियों के दाम बारिश का एक बड़ा फायदा बिजली बचत परिप्रेक्ष्य में ये होता है की लोग न तो शौपिंग के लिए मॉल में जा पाते हैं न ही सिनेमा देखने के लियेपिक्चार हॉल में . इससे मॉल और सिनेमा ठीयातारों में चलने वाले ऐसी नियोन लाईट्स वैगेरह भी कम जलती हैं..और तो और लोग घरों में भी अक्सर टी वी वाले कमरे में ही बैठकर चाय-पकौडे खाते हैं. बांकी कमरों की बिजली बंद..हेई न बचत

एक और बचत जो शायद सबसे बड़ी बचत होती है ,,झुग्गी बस्तियों वालों द्वारा तार न डालने से होने वाली बचत. आधी झुग्गी आबादी तो अपनी टपकती झुग्गी में बूंदों के नीचे ग्लास कटोरे लेकर वर्षा जल संचयन में लगी रहती है . बांक्यों को ये डर होता है की तार के साथ करंट मुफ्त की स्कीम के चपेट में न आ जाएँ. बारिश और बिजली की आपसी निर्भरता के गूढ़ शास्त्र को समझाने के उपरांत लपटन जी कहने लगे ...मियाँ ये शोध तो पेटेंट कराने लायक है. कम से कम सरकार तथा विद्युत कंपनियों को तो ये थ्योरी समझाई ही जानी चाहए. इसका मतलब महानगरों में बढ़ते बिजली संकट के लिए कहीं न कहीं इन्द्र देवता भी अवश्य ही जिम्मेदार हैं,,लपटन जी ने फरमाया .

हमने अपने बच्चे को कागज़ की नाव बनाकर दे दी है कह दिया है की जिस दिन ये नाव चलाने लायक पानी गली में इकठ्ठा हो जाए समझ लेना तेरा वीडीयो गेम बीच में नहीं रुकेगा. पुत्तर भी कागज़ की नाव और वीडीयो गेम के बीच का गणितीय सूत्र नहीं समझ प् रहा है.....

रविवार, 28 जून 2009

बलात्कार : एक सामाजिक अभिशाप

पिछले दिनों एक के बाद एक जिस तरह से देश और विदेश के अलग लगा भागों से बलात्कार की घटना की खबरें आयी हैं उसने न सिर्फ इस अपराध की बढ़ती दर की तरफ ध्यान खींचा है, बल्कि समाज के सामने बहुत से प्रश्न खड़े कर दिए हैं. बलात्कार की घटनाएं पिछले एक दशक में बहुत तेजी से बढ़ी हैं.ये न सिर्फ भारत जैसे अर्धशिक्षित एवं अविकसित देशों में कुछ सबसे ज्यादा होने वाले अपराधों में से एक है , बल्कि पूर्ण विकसित पश्चिमी देशों में भी बलात्कार, पांच बड़े घट रहे अपराधों में से एक है. सामाजिक विश्लेषक इस बात पर चिंतित हैं कि ऐसा तब हो रहा है जब वैश्विक समाज का शिक्षा और विकास का स्तर अब पहले से कहीं अधिक है. महिलाएं अपने अधिकार, अपनी सुरक्षा के प्रति होने वाले अपराध के लिए कठोर से कठोर कानून बनाए जा रहे हैं. इन सबके बावजूद महिलाओं के प्रति किये जा रहे अपराधों , शारीरिक शोषण तथा बलात्कार आदि की दर में हो रही विर्द्धि कहीं न कही यही दर्शा रही है कि समस्या को गंभीरता से लेकर सही दिशा में उसके समाधान की तरफ नहीं बढ़ा जा रहा है.

महिलाओं की स्थिति, उनके विकास, सामाजिक स्तर, उनके विरुद्ध किये जाने वाले अपराध आदि पर अध्ययन करने वाली कई अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं ने समय समय पर कई रिपोर्टें प्रकाशित की हैं. ऐसी ही एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व में प्रति मिनट २६ घटनाएं महिलाओं के शारीरिक शोषान की, लगन्भाग ७६ घटनाएं छेड़छाड़ की, २८ घटनाएं उनके कत्ल और बलात्कार की, ५२ घटनाएं घरेलू हिंसा की और न जाने कितनी ही घटनाएं कन्या भ्रूण ह्त्या की हो रही हैं.रिपोर्ट के अनुसार विकसित देशों में जहां कम उम्र में ही यौन संपर्क तथा गर्भपात, दैहिक शोषण एवं घरेलू हिंसा की घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है. वहीं अशिक्षित ,पिछडे एवं विकासशील देशों में कन्या भ्रूण हत्या के कारण, अंधविश्वास के घरेलू हिंसा और दहेज़ हत्या के साथ साथ बलात्कार के कारण भी प्रतिदिन हजारों महिलाएं मौत को गले लगा रही हैं. महिला समाज के शाश्क्तिकरण और सामान आधिकारिता की पक्षधर संस्थायें इसका स्पष्ट कारण मानती हैं पुरुष प्रधान समाज, नारी के बढ़ते वर्चस्व और सफलता को हतोत्साहित करने के उद्देश्य से ही प्रतिकार स्वरुप ऐसा कर रहा है.

सामाजिक परिवर्तनों पर गहरी नज़र रखने वाले विश्लेषक ऐसा नहीं मानते. वे इसकी कई अलग सी वजहें मानते हैं. सामाजिक विश्लेषकों का कहना है कि अंधविश्वास से ग्रस्त होकर दायाँ, और चुडैल के नाम पर महिलाओं को नग्न करके घुमाने , मारने वाले जलाने वाले, तथा शराब के नशे में चूर होकर अपनी ही पुत्री , बहन का शारीरिक शोषण करने वाले तो किसी महिला पुरुष वर्चस्व से कोई मतलब नहीं होता ये सब परिवेश से प्रभावित अपराध है. इस विषय पर शोधरत अंतर्राष्ट्रीय संस्था ,"वुमेन :टारगेट ऑफ़ शोशल क्राईसिस " ने अपने अध्ययन एवं सर्वेक्षण से महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों तथा बलात्कार जैसी घटनाओं के कई कारणों पर प्रकाश डाला है.

महिलाओं के प्रति जो अपराध नगरीय क्षेत्र में हो रहे हैं उसके लिए सबसे बड़ा कारण माना जा रहा है सामाजिक-सांस्कृतिक प्रदूषण, यौन उन्मुक्त्तता तथा उपभोगी प्रवृत्ति के प्रसार को . पश्चिमी देशों में जहां बच्चे एवं युवा ,रोमांच और उत्सुकतावश कभी बहकावे में तो कभी स्वेच्छापूर्वक ही शोषण के सुश्चक्र में फंस जाते हैं. संस्था ने बताया कि पिछले एक दशक में अवयस्क युवतियों द्वारा गर्भपात की घटनाओं में लगभग ३४ प्रतिशत के वृद्धि हुई है. वैश्वीकरण के इस प्रवाह में एशियाई
युवा आधुनकीकरण के आंधी में पश्चिमी संभ्यता का अन्धानुकरण करने लगे. इसी बीच टेलीविजन, मोबाइल,केबल ,,डिश, इन्टरनेट,फैशन, ने भी एक के बाद एक भारतीय बाजार के रास्ते , भारत के घरों में पैठ बनाई. ऐसा अनाहीं है कि इन उपकरणों व माध्यमों ने ही सारा माहौल बिगाड़ दिया, मगर भारत की जनता जो न तो पूर्णतया शिक्षित है और परिणामतः न ही मानसिक रूप से परिपक्व इसलिए इनके द्वारा जो भी बुराइयां आ सकती थी पूरे वेग से आयें. आज इpन्टरनेट कैफे, कॉल सेंटर, आदि के नाम का जहां भी जो भी दुरूपयोग महिला अधिकारों के विरुद्ध किया जा रहा है वो इसी का परिणाम है.

पिछले एक दशक में हुई बलात्कार की घटनाओं में आश्चर्यजनक रूप से २७ प्रतिशत ऐसे थे जिनमें अपराधी पीडिता का कोई अपना था. बहुत सी ऐसी घटनाएं भी थी जिनमें अपराधी पिता , भाई और पुत्र तक थे . संस्था के अनुसार इन सभी घटनाओं में जो एक बात सामान थी , वो थी शराब. मद्यपान , बहुत ज्यादा सेवन करने के कारण ये अपराधी आवेश और उत्तेजना के चरम पर पहुँच जाते हैं, ऐसी स्थिति में ही वे ये पाशविक कृत्य कर बैठते हैं. सर्वेक्षण की रिपोर्ट यही साबित करती है कि बलात्कार के कुल मामलों में सिर्फ १३ प्रतिशत मामले में ही ऐसे होते हैं जिनमें अपराधी किसी निजी दुश्मनी से, किसी से बदला लेने के लिए या किसी अन्य कारण की वजह की वजह से होते हैं. एनी सभी पूर्व नियोजित नहीं होते हैं.

बलात्कार की घटना पर रोक न लग पाने का का एक एक मुख्या कारण है, इसके अपराधियों में सजा के दर का ख़त्म हो जाना. पश्चिमी देशों में बलात्कार के अपराध से मुक़दमे की सारी प्रक्रिया और कार्यवाही इतनी नियोजित , गूप्नीय व तकनीक आधारित (डी एनन ए ) होती है कि गलती की गुंजाइश न के बराबर होती है जबकि भारत में तो बलात्कार की घटना के बाद से मुक़दमे की समाप्ति और उसके बाद तक पीडिता का सारा जीवन ही किसी बलात्कार से कम नहीं होता. धीमी न्यायिक प्रक्रिया एवं साक्ष्य तथा वैज्ञानिक सबूतों के अभाव में अक्सर हे एमुज्रिम बच निकलते हैं. भारतीय कानून व्यवस्था में ऐसे अपराधों में पीडिता के लिए किसी भी तरह की कोई आर्थिक , मानसिक या सामाजिक सहायता की कोई व्यवस्ता नहीं है.ये इस मुद्दे का सबसे अफसोसजनक पहलु है.

भारत में बलात्कार की घटनाओं में मीडिया का गैर संवेदनशील और गैर जिम्मेदार रवैया भी काफी अहम् भूमिका निभाता है ,किसी मुक़दमे को दिशा देने में. कई बार तो तो मीडिया. विशेषकर इलेक्ट्रोनिक मीडिया..अति उत्साह में और खोजी पत्रकारिता के नाम पर जाने अनजाने वो सब भी कर जाता है है जो कि कानूनन गलत है ,,,और बाद में इसके कारण कई बार अदालतों से फटकार खाने की सजा भी पता है. एक और बात जो अक्सर मीडिया , इस तरह की तमाम घटनाओं की तीपोर्तिंग में करती है वो है ...किसी भी घटना के घटते ही उसके संभावित आरोपियों..उसके मुजरिम..सजा आदि के नतीजे पर झट से पहुँच जाना..आरुशी ह्त्या काण्ड में मीडिया ने अपनी रिपोर्टिंग से आरुशी के पिता को ही उसका कातिल करार दे दिया था...ऐसी रिपोर्टिंग भले ही न्यायिक प्रक्रियाओं पर किसी तरह का कोई प्रभाव न डालती हों..मगर एक अनिश्चित माहौल तो जरूर ही तैयार कर देती हैं.

जो भी हो इतना तो निश्चित है कि ये घत्नाह्यें समाज के लिए एक चेतावनी की तरह हैं...और साथ ही आत्मावलोकन करने का इशारे भी..अन्यथा जिस दिन आधी दुनिया ने आपने हक़ के लिए वही किया जो पिछले दिनों पुणे की एक अदालत में ,,क्रुद्ध महिलाओं की भीड़ ने एक मुजरिम के साथ किया था ..उस दिन सचमुच ही एक अलग समाधान निकलेगा...



मंगलवार, 16 जून 2009

आखिरकार मुझे भी मिली अलेक्सा की रैंकिंग



अभी पिछले दिनों जब पढ़ा की कुछ चिट्ठों को अलेक्सा की सर्वोच्च रैंकिंग मिली है ...मन खुशी से बाग़ बाग़ हो गया..कमाल है इतनी इज्ज़त मिल रही है हमारी हिंदी ब्लॉग्गिंग को....ये अलग बात है की इसके बावजूद हम लोग आपस में राजनेताओं की तरह पता नहीं कौन कौन सा गुमान पाले एक दुसरे से भीड़ जाते हैं...लगते हैं अपनी खुन्नस निकालने...खैर....ये तो ब्लॉग्गिंग का पैदायशी चरित्र है......तो जैसे ही हिंदी ब्लोग्स को अलेक्सा की रैंकिंग की खबर मिली हमने उसी वक्त तय कर लिया ..की अब तो चाहे जो हो...हम भी अलेक्सा से ये रैंकिंग ले कर रहेंगे....मगर ये होता कैसे....अजी दो साल तो हमें ये पता करने में लग गए की ये हिंदी में टिप्प्न्नी कैसे करते हैं...इतनी काबलियत में तो अलेक्सा की रैंकिंग मिलने से रही ..क्या करें..

अरे अनुभवी मित्र चिटठा सिंग कब काम आते..सो सोचा उन्ही से कोई उपाय पूछा जाए......यार तुम अलेक्सा के बारे में कुछ जानते हो..मैं उसकी रैंकिंग लेना चाहता हूँ..
चिटठा थोडा हैरान परेशान था ," यार नाम से तो कोई अंग्रेज महिला मालूम पड़ती है...पर तू क्यूँ पूछ रहा है..क्या भाभी को पता है ....अबे क्या करने जा रहा है...........?

अरे नहीं नहीं यार चिट्ठे..धीरे बोल वैसा कुछ नहीं है.....मैं जो ब्लॉग्गिंग करता हूँ न ...सुना है की उसमें ये अल्सा कोई रैंकिंग वैगेरह देती है....यदि दे दे तो समझो जी आप तो छा गए......."

बेटा कहीं इस छाने के चक्कर में ऐसा न हो भाभी तुझे खा जाए,..भाई तेरी मर्जी..अच्छा तू एक काम कर चाणक्य पूरी वाले इलाके में ढूंढ उसे...कई सारी एम्बैसी हैं वहाँ ..और बहुत से अंग्रेज देखें हैं मैंने घुमते हुए.

मैंने समय खोटी करना ठीक नहीं समझा ..बड़ी ही मशक्कत के बाद पता चला की तुम्बकतु की एम्बसी में एक अलेक्सा दिकोस्ता नाम की युवती काम करती हैं..मैं उससे मिलने के लिए जाते हुए सोच रहा था ...कमाल है यार तुम्बक्तु की किसी महिला को हमारे चिट्ठों में इतनी दिलचस्पी और उसकी रैंकिंग को लेकर इतना बवाल ...इतना उछाल ..कमाल है.

जी मैं भी रैंकिंग लेने आया हूँ ..देखिये इससे पहले की आप हाँ या न करें....मैं आपको अपनी काबिलियत के बारे में बताता हूँ.मैं पिछले अब वर्षों से इस मगजमारी के काम में बेरोजगार हूँ........(ये नहीं बताया की कितनी पोस्टें लिखी हैं..क्या पता रैंकिंग ही न मिलती ) जी अब तो तिप्प्न्नियाँ भी करने लगा हूँ.......कभी कभी किसी गंभीर मुद्दे पर भी लिखता हूँ.....पहले मोहल्ले से जुडा था अब वहाँ से निकला हूँ तो नुक्कड़ पर खडा हो गया हूँ.....और सुनिए...इसी हफ्ते मुझे ताऊ जी की मेरिट लिस्ट में भी स्थान मिला है ..देखिये मैं कोई बड़ी रैंकिंग नहीं मांग रहा हूँ ..कोई भी छोटी मोटी ....सस्ती सी.......

मुझे नहीं पता की अलेक्सा ने क्या समझा क्या नहीं समझा ..मगर थोड़ी देर बाद उसने मुझे बड़ा ही अजीब सा नंबर दिया

नम्बर .?@#$%^७६५४३*&($#@!?><+९८०००७६५ ..मैं घबरा गया..जवाब मिला ये चाईनीज़ नंबर है आजकल चाईनीज से सस्ता कुछ भी नहीं है..और हाँ तुम्हारे ब्लॉग्गिंग शोलिग्गिंग का पता नहीं ये हमारे यहाँ खुल रहे लेस्बियन क्लब की माम्बर्शिप का नम्बर है....रख लो इससे भी तुम्हारी रैंकिंग मिलेगी...

मैं सर पर पाँव रख कर भाग लिया........

शनिवार, 13 जून 2009

वे एहसानों का हिसाब रखते हैं..


डरते हैं अब तो,
पास जाते उनके,
सुना है की,
वे एहसानों का हिसाब रखते हैं.......

बालों की सफेदी से,
मौत भुलावे में,
कहीं भेज न दे बुलावा,
बोतलों में नहीं ,
वे मटकों में खिजाब रखते हैं.....

कत्ल करने से गुरेज नहीं,
सजा का भी खौफ नहीं,
एक हाथ में खंज़र,
दूसरे में कानून की किताब रखते हैं....


ये अलग बात है की देखते नहीं,
नजर भर में पलट दें , तख्त-ताज,
लफ्जों में क़यामत,
आँखों में सैलाब रखते हैं....

आदमियों की भीड़ में,
इंसानों की तलाश हुई मुश्किल,
इंसान की सूरत सा ,लोग,
चेहरे पर नकाब रखते हैं..



गुरुवार, 11 जून 2009

मैं, चिट्ठासिंग ,और महिला आरक्षण



जब भी किसी गंभीर मुद्दे पर बाबा रामदेव की कपाल भारती वाली मुद्रा में ध्यान लगा कर सोच रहा होता हूँ. ये चिट्ठासिंग (अरे वही पाजी जिसकी हर्बल जूतों की दूकान है मेरी गली में ) कमबख्त पता नहीं कहाँ से आ जाता है..और मुझे मंझधार वाली स्थिति से सीधे बंटाधार वाली स्थिति तक ले जाता है .

आते ही चीखा ," हाँ भाई ..चिट्ठोरे,( कहता है जो लुच्चे होते हैं उन्हें मैं छीछोरे कहता हैं और जो टुच्चे होते हैं और लिखते भी हैं ..उन्हें चिट्ठोरे ) क्यूँ ऐसे मुतमईन बैठा है ...न तो तेरे से पहेली बूझी जाती ...न कोई इनाम जीता जाता..तो फिर ये चिंतन मनन क्यों कुछ भी ठेल ठाल. दे...वैसे भी पढ़ कौन रहा है....

अबे जा चिट्ठे..तुझे क्या पता...इन दिनों महिला आरक्षण पर बड़ी ही तीखी बहस चल रही है...

अच्छा अच्छा तो तुम लोग भी लग गए इस ड्रामे में ...रुको इससे पहले की कुछ और कहो सुनो मेरे कुछ सवालों का जवाब दो ...बिलकुल सीधे सीधे ..स्पष्ट ..

अच्छा बताओ इस वक्त देश के सबसे बड़े पद...राष्ट्रपति ..पर कौन है ..पुरुष या महिला...?

मुझे पता था ,,तुम यही कहोगे..महिला...मगर ..तुम्हें याद दिला दूं की इस पद पर कोई महिला पहली बार ही बैठी है...

चुप चुप....ये पहली बार वाला राग मत गा...अबे कोई दलित बना तो पहला दलित..कोई महिला बनी तो पहली महिला..कोई वैज्ञानिक बना तो पहला वैज्ञानिक...अमा कोई भी बने तुम लोग ये पहले वाला एंगल जरूर घुसेड दोगे...अब चुपचाप मेरे सवालों का जवाब दे.......

अच्छा ये बता लोक सभा के अध्यक्ष के रूप में किसे चुना गया है ..पुरुष या महिला को...

महिला को ..मीरा कुमार..मगर ये पहली....मैं सिटपिटा कर चुप हो गया..

अच्छा ये बता ये जो दो बार से तुम प्रधानमंत्री बना रहे हो ..आज जिस राजनितिक दल के हाथ में देश की बागडोर है ..उस पार्टी की बागडोर किसके हाथ में है..पुरुष या महिला...

मैं गुस्से से घूर कर रह गया.........

चल छोड़ ...तू ये बता...देश की राजधानी दिल्ली ..की सरकार का मुखिया कौन है..पुरुष या महिला...?

नहीं बता रहा ..और सुन ,... उत्तर प्रदेश. राजस्थान...और भी कई राज्यों जिनका नाम अभी मुझे याद नहीं है का मुख्या मंत्री कौन है..पुरुष या महिला..

अबे सबसे धाँसू मंत्रालय..रेल मंत्रालय किसके पास है..पुरुष या महिला...के..

अबे घोंचू..आज जहां देख ..वहाँ महिला राजनीतिज्ञों की धाक पहले से ही है..क्या आरक्षण से कुछ अलग हो जाएगा...
बेटा ..सब कुछ ढोंग है...कूटनीति है...जैसे हिंदी कमजोर ..कमजोर है..का धंधा फल फूल रहा है न ..वैसे ही ये दूकान भी चल रही है..ताकि सब को कहने का मौका मिलता रहे की ..देखो महिला कमजोर है ..उन्हें आरक्षण देंगे तभी उनका कल्याण होगा...और ये तेरी महिलाएं भी कम नहीं है ...इस आरक्षण के लिए क्यूँ नहीं सारी महिला राजनीतिज्ञ एक साथ हो लेती...और छोड़ ये कभी एक साथ होती ही नहीं...तू ही बता इस पोस्ट के लिए गूगल बाबा का कितना सर खाया तब जाके ये तस्वीर मिली है....सब दिखावा है ...कुछ दिनों तक इसी बहाने देश को भटकाया जाएगा ताकि ..बाजार में आलू प्याज के दाम सुनते समय भी उसके दिमाग में यही गूंजे ..महिला आरक्षण....समझा ..यार ..

जा जा तो जा..तू मुझे पथ भ्रष्ट कर देता है...मैं फिर कपाल भारती की मुद्रा में बैठ रहा हूँ....

सोमवार, 8 जून 2009

बच्चे कहाँ पढें :देश में,परदेश में ......


जी हाँ आप जो ये तस्वीर देख रहे हैं....ये किसी ट्वेंटी ट्वेंटी मैच के लिए टिकट खरीदने के लिए लगी लम्बी लाइन नहीं है...न ही किसी टैलेंट हंट शो के लिए औदीशन देने के लिए खड़े हैं ये बच्चे...ये सब वे बच्चे हैं जो अब स्कूल से निकल कर.......कॉलेजों में दाखिला लेना चाहते हैं....दिल्ली में जब से पहुंचा हूँ..यहाँ का शैक्षणिक मुहाल देख कर हैरान रहता हूँ...छोटी छोटी क्लासों से सभी माता पिता परेशान...बच्चों के दाखिले के लिए ....भागमभाग..सिफारिशें...डोनेशन..और भी पता नहीं क्या क्या...(हालाँकि मैं भी अगले साल इस दौड़ में शामिल होने वाला हूँ ) ..एक बार दाखिला मिल गया..फिर बच्चों की पढाई..मोटी मोटी किताबें...उनके अजीबोगरीब प्रोजेक्ट...इसके बाद परीक्षाएं...और परीक्षा के दिनों में तो चारों तरफ एक अघोषित कर्फ्युं सा लग जाता है....शादी में नहीं जा सकता...बच्चों की परिक्षा है न...टी वी नहीं देख सकते ..बच्चों की.....न...और भी पता नहीं क्या क्या नहीं कर सकते...परीक्षा का परिणाम आया ..तो लीजिये ..आप खुद ही देख लीजिये......हे भगवान् सिर्फ इक्क्यानवे प्रतिशत (यहाँ सिर्फ ऐसे ही लगाया जाता है .....जैसे बड़े बड़े शो रूम में भारी भरकम दाम के आगे लगा होता है .....सिर्फ....रुपये..)..इसमें क्या होगा....कहीं भी एडमीशन नहीं मिलेगा....(बताइये ..एक हमारा ज़माना था की तैंतीस प्रतिशत को छुआ नहीं की लड्डू बंट जाती थी पूरे मोहल्ले में..और खुदा न करे कभी साठ से ऊपर (अजी हमने कब कहा की गाँधी जी की तरह नक़ल नहीं करते थे ) आ गए तो कमीज फाड़ कर ही घर पहुँचते थे (हमें पता था की पिता श्री नई कमीज सिलवा ही देंगे )....और यहाँ देखिये इक्क्यान्वे वाले को झाड़ पड़ रही है....

मगर जल्दी ही समझ आ गया की क्यूँ पड़ रही है.....अजी अजीब मारा मारी है...कहीं कट ऑफ चल रहा है....कहीं बिलकुल ही शत ऑफ हो गया है..इन..फर्स्ट लिस्ट...सेकंड लिस्ट...और पता नहीं किन किन लिस्टों के चक्कर में बेचारे पिस्ट (पस्त ) हो जाते हैं......पिछले कुछ वर्षों से खाते पीते घरों के बच्चे .....पढने के लिए विदेश जाने लगे....अब वहाँ भी झंझट......
देखा नहीं ...कमबख्त ओरिजनल पेपर और कार्बन (वही गोरे काले का चक्कर )......तो फिर अब बच्चे जाएँ तो कहाँ जाएँ......पढने के लिए......मेरी समझ में ये नहीं आया की आखिर सरकार को पिछले दस बीस वर्षों में नए कॉलेज खोलने की जरूरत क्यूँ नहीं महसूस हुई....जबकि मॉल और मल्टीप्लेक्स तो मेरे आसपास ही पिछले एक साल में दस खुल गए हैं......अच्छा समझा....शायद सरकार सोच रही है की......बच्चे पढ़ के क्या करेंगे...सीधे ही नौकरी पर लग जाएँ ...इन शौपिंग कोम्प्लेक्स में........अब जाकर समझा सरकार की योजना ........

शुक्रवार, 5 जून 2009

किस किस के दर्द का करें हिसाब ?


इतने निष्ठुर ,
इतने निर्मम,
ये अपने से,
नहीं लगते,
फिर किसने,
ये नस्लें ,
बोई हैं,

किस किस के,
दर्द का,
करें हिसाब,
लगता है,
पिछले रात,
शहर की,
हर आँख,
रोई है......

सपनो का,
पता नहीं,
मगर नींद तो,
उन्हें भी,
आती है,
जो ओढ़ते हैं,
चीथरे ,या
जिनके तन पर,
रेशम की,
लोई है.....

क्या क्या,
तलाशूँ ,इस,
शहर में अपना,
मेरी मासूमियत,
मेरी फुर्सत,
मेरी आदत,
सपने तो सपने,
मेरी नींद भी,
इसी शहर ,
में खोई है.....

ये तो,
अपना-अपना,
मुकद्दर है,यारों,
उन्होंने संभाला है,
हर हथियार ,अपना,
हमने ,उनकी,
दी, हर चोट,
संजोई है...

पर्यावर दिवस पर........

नदियाँ ,
लगती हैं,
नाले जैसी,
पानी बना,
जहर सामान,
लगता है ,
दुनिया ने,
अपने पाप ,
की गठरी,
धोई है...........

गुरुवार, 4 जून 2009

युवा हुई संसद

इस बार जो जनादेश निकल कर सामने आया है उसने न सिर्फ खिचडी सरकार बनने की मजबूरी वाले हालातों से राजनितिक परिदृश्य को बाहर निकाला है बल्कि इस बार सबसे ज्यादा युवा सांसदों को अपने प्रतिनिधि के रूप में चुन कर देश के संचालन की जिम्मेदारी युवा कन्धों पर डाल दी है. ऐसे में जबकि देश की लगभग आधी आबादी युवाओं की श्रेणी में ही आती है तो ये तो स्वाभाविक है और बहुत सकारात्मक भी. एक तरफ जहाँ इन जीते हुए प्रतिनिधियों में अपनी नई सोच , नए विचार और अपनी नयी ऊर्जा के अनुरूप उत्साह और जोश देखने को मिलेगा, वहीँ चूँकि ये सब किसी न किसी राजनतिक घराने से सम्बंधित हैं इसलिए विरासत में मिला राजनितिक अनुभव भी उनकी कुशलता में इजाफा करेगा. जनता इस बार अपने इन युवा जनप्रतिनिधियों से कम से कम इस बात की उम्मीद तो लगा ही सकती है कि इस बार संसद सत्र में समय और पैसे की बर्बादी नहीं होगी..
इससे बढ़कर एक और अच्छी बात ये रही है कि इन नए सांसदों पर पूरा भरोसा जताते हुए इन्हें पहली बार में ही मंत्री पद का भार दे कर जहां जनता की भावना का सम्मान किया गया है वहीं काफी पहले से चली आ रही एक शिकायत , कि मंत्रीमंडल में उम्र के हिसाब से असंतुलन रहता है, भी थोड़ी दूर हो जायेगी..अब ये सांसदों का नया और युवा कुनबा भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में कितना प्रभावकारी साबित होगा ये तो वक्त ही बताएगा....मगर लोग ummeed तो nischit ही कर रहे हैं ......
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