प्रचार खिडकी

रविवार, 31 मई 2009

कुछ पंक्तियाँ







काफी समय पहले बी आर विप्लवी जी की कुछ पंक्तियाँ पढी थी ....मुझे पसंद आईं .....आप भी गौर फ़रमाएँ

पूछकर जात -घराने मेरे,
सब लगे ऐब गिनाने मेरे,

छेड़ मत गम के फ़साने मेरे,
दर्द उभरेंगे पुराने मेरे,

जात फिर इल्म से बड़ी निकली,
काम ना आये बहाने मेरे,

चंद लम्हों की मुलाकातों में,
कैद लाखों हैं जमाने मेरे,

छाँव आँचल की जब मिली माँ की,
भर दिए जख्म, दुआ ने मेरे,

अश्क बरसे तो सब गुमान बहे,
घुल गए मैल ,पुराने मेरे,

इक सिफर आखिरात का हासिल था ,
रह गए , जोड़-घटाने मेरे,

जब से तू बस गया निगाहों में,
चूक जाते हैं निशाने मेरे,

शहर में घर , न गाँव में खेती,
है कहाँ ठौर, ठिकाने मेरे,

विप्लवी खोजते हुए खुशियाँ,
सब लुटे ख्वाब सुहाने मेरे

उम्मीद है आप पसंद करेंगे........

--

रविवार, 10 मई 2009

माँ अंगीठी थी


कुछ समय पहले एक कविता पढी थी जो मन मष्तिष्क पर छाप सी गयी थी, उस कविता में मैंने अपनी माँ को पाया था, रंजना श्रीवास्तव जी द्वारा लिखी गयी कविता जब भी पढता हूँ मेरी आँखें नम हो जाती हैं......आप भी पढिये.....
माँ अंगीठी थी,
जिस पर पकता था खाना,
और जीमते थे परिवार के लोग,
माँ कुछ नहीं बोलती थी,
जब फूलती थी रोटियाँ,
उसकी लपट और आंच पर,
माँ के धधकने के इतिहास से,
अनजान थे परिवार के लोग,
उसके ताप और उष्मा की,
अन्तरंग दुनिया में,
एक स्त्री का राख हो जाना तय था,
पिता को गर्व था,
माँ के इस राख होते जाने पर,
उन्हें कहाँ पता था ,
की राख हो जाने के लिए,
आग जैसा जीवन,
जीती हैं स्त्रियाँ............

शुक्रवार, 1 मई 2009

शादी की सालगिरह और मजदूर दिवस ,क्या इत्तफाक है .....


वैसे तो पहले जब ये मजदूर दिवस आता था तो मैं अक्सर ही मजदूरों की बारे में सोचता था, न सिर्फ़ सोचता था, बल्कि इस ख़ास दिन के लिए लिखे गए आलेखों पर एक नजर डालता, और सच कहूँ तो बहुत सी तब्दीलियों के बावजूद मुझे कोई बहुत बड़ा बदलाव नहीं देखने को मिला है अब तक, कम से कम भारतीय मजदूरों में तो नहीं ही। हाँ पिछले साथ वर्षों से इस मजदूर दिवस के साथ साथ जो एक चीज और भी मेरे ध्यान में आज के दिन आती है वो है मेरी सालगिरह अजी शादी की सालगिरह। आप भी सोचेंगे वह क्या कमाल है मजदूर दिवस के दिन शादी.,मैं सोचता हूँ क्या ये इत्तफाक है, यदि हाँ तो बड़ा खूबसूरत इत्तफाक रहा ।

पहले मुझे मजदूर दिवस पर सिर्फ़ मजदूर ही मजदूर की तरह दिखाई देता था, मगर अब तो मुझे अपनी तरह का हर प्राणि जो पति रूप में परिवर्तित हो चुका है वो भी निरा मजदूर ही लगता है, मगर एक बात तो की जो आनंद इस मजदूरी mहमें तो हैप्पी मजदूर दे और,..., तो बिया हमें तो हैप्पी मजदूर दे और हैप्पी मैरेज अनीवार्सरी......

लेकिन सच कहूँ तो मजदूरों को देख कर हमेशा ही मेरे मन में जो एक बात आती रही है ....

उनको ख़ुद पसंद देखा, उनको बुलंद देखा ,
ख़ुद को देखा है औरों की खुशामदों में,
जिन्होंने खड़े की बुलंद इमारतें , उन्हें,
हमेशा ही रहते देखा बरामदों में.......
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